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भगवान श्री विश्वकर्मा जी को विश्व के प्रथम देव शिल्पकार और सृष्टि के निर्माता के रूप में जाना जाता है। वे न केवल देवताओं के वास्तुकार हैं, बल्कि सम्पूर्ण जगत के प्रथम अभियंता (Engineer), शिल्पी (Architect) और नवाचारक (Innovator) भी हैं। उनका योगदान केवल धार्मिक ग्रंथों में ही नहीं, बल्कि मानव सभ्यता के विकास के हर चरण में स्पष्ट दिखाई देता है।

🏗️ सृष्टि के निर्माता:

पुराणों के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा जी को स्वयं ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना हेतु नियुक्त किया। उन्होंने स्वर्गलोक, इंद्रपुरी, द्वारका नगरी, लंका, हस्तिनापुर, और श्रीकृष्ण का सुधर्मा सभा भवन जैसे अद्भुत नगरों का निर्माण किया। प्रत्येक सृष्टि, वास्तु और उपकरण में उनका अद्भुत कौशल झलकता है।

⚙️ विज्ञान, शिल्प और तकनीक के प्रेरक:

भगवान विश्वकर्मा जी ने शिल्पशास्त्र, वास्तुशास्त्र, और यंत्र निर्माण विद्या की आधारशिला रखी। उन्होंने देवताओं के लिए वज्र (इंद्र का अस्त्र), सुदर्शन चक्र (श्रीकृष्ण का अस्त्र), त्रिशूल (भगवान शिव का अस्त्र) और पुष्पक विमान जैसे अद्भुत आविष्कार किए। यह सब उनके अद्वितीय इंजीनियरिंग कौशल का प्रमाण हैं।

🕉️ समाज और संस्कृति में योगदान:

भगवान विश्वकर्मा जी का संदेश है —
“कर्म ही पूजा है, और सृजन(creation) ही साधना।”
उन्होंने मानव समाज को यह सिखाया कि श्रम, ज्ञान और सृजन ही जीवन के वास्तविक मूल्य हैं। विश्वकर्मा समाज आज भी उन्हीं सिद्धांतों पर चलता है — जहाँ परिश्रम को सम्मान और कला को पूजा माना जाता है।

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